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बाबा रामदेवजी महाराज ने १५२५ को भादवा सुदी ११ के दिन रुणिचा गांव के राम सरोवर पर सब रुणिचा वासियों को समझाया तत्पश्चात आपने समाधी ली|
रामदेव जी ने समाधी में खड़े होकर सब के प्रति अपने अन्तिम उपदेश देते हुए कहा प्रति माह की शुक्ल पक्ष की दूज को पूज पाठ, भजन कीर्तन करके पर्वोत्सव मनाना, रात्रि जागरण करना। प्रतिवर्ष मेरे जन्मोत्सव के उपलक्ष में तथा अन्तर्ध्यान समाधि होने की स्मृति में मेरे समाधि स्तर पर मेला लगेगा। मेरे समाधी पूजन में भ्रान्ति व भेद भाव मत रखना। मैं सदैव अपने भक्तों के साथ रहुँगा। इस प्रकार श्री रामदेव जी महाराज ने समाधी ली।
प्रभु ने समाधी ली और प्रजा में शोक संचार हो गया, उनमे बेचैनी बढ़ गयी| दुखित होकर सभी पुकारने लगे और जब प्रजा से रहा नहीं गया तो उनहोंने समाधी को खोदा| समाधी खोदते ही उस जगह पर फूल मिले और सभी प्रजा ने नमन कीया और उस जगह पर बाबा कि समाधी बनाइ! |
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