पिछम धरा रा पीर, धोरा री धरती रा पालनहार श्री बाबा रामदेव जी के इस कलयुग मे अवतार के पीछे एक प्रसंग जुडा हुआ है। कहते है जब-जब धरती पाप का भार बढ़ता है, मानवता पर खतरा आता है, तब-तब इस धरती पर भगवान ने अवतार लिया है । ऐसा ही कुछ 15 वीं सदी मे हुआ |


राजा अजमल जी अपने राज्य मे अपनी प्रजा के साथ सुख-शान्ति पूर्वक राज्य कर रहे थे, उन्हे केवल एक ही बात की कमी थी, वह थी पुत्ररत्न ! वे सर्वसम्पन्न होते हुए भी अपनी निःसंतानता के कारण चिन्तित रहते थे । वे द्वारिकाधीशजी के परम् भक्त थे। कहते है वे 12 (बारह) बार द्वारिका पूरी  जा चुके थे और वे जब भी द्वारिका  जाते अपने राज्य की सुख-शान्ति की मनोकामना करते ।

     एक बार अच्छी बारिश होने पर उन्होने द्वारिकाधीश के लिये अपने महल से प्रस्थान किया। उसी समय कुछ किसान अपने खेतो कि तरफ हल लिये जा रहे थे। उन किसानो ने अजमल जी को देखकर अपशकुन मानते हुए (एक अंधविश्वास है की अगर कोई

शुभ कार्य हेतु जाये और निःसंतान सामने आ जाये तो अपशकुन होता है) वापिस अपने घरो की ओर जाने लगे। तभी अजमल जी ने उन्हे यह पूछा कि इतनी अच्छी बरखा होने पर भी आप वापिस क्यो जा रहे हो, तभी किसानो ने बताया कि आप की निःसन्तानता हमारे लिये अपशकुन है, अतः खेतो मे जाने का कोई आशय नही रहा । यह सुनकर अजमालजी को मन ही मन बहुत दुःख हुआ परन्तु दयालु प्रवृति के होने के कारण उन्होने किसानो को सजा न देकर उनसे हाथ जोड़कर क्षमा माँगी व विदा ली ।

अजमाल जी जब   द्वारिका पहुंचे तब उन्होने द्वारिकाधीश की मूर्ति के समक्ष अपना दुःख प्रकट किया। परन्तु उस मूर्ति से कोई प्रत्युत्तर न पाकर अजमल जी क्रोधित हो गये और उस पत्थर की मूर्ति पर लड्डू का प्रहार कर दिया। यह सब देखकर पुजारी वहा पर

आये और अजमाल जी को पागल समझ कर कह दिया की भगवान तो इस पत्थर कि मूर्ति मे नही है, भगवान तो क्षीर सागर की कोख मे शेषनाग की शय्या पर विश्राम कर रहे है। अजमल जी उस पुजारी की बातों मे आ गये और क्षीर सागर मे भगवान के दर्शन प्राप्त करने के लिये डुबकी लगा दी ।


लेकिन भगवान का चमत्कार देखो, विष्णु भगवान ने उस पुजारी के कहे अनुसार ही शेषनाग की शय्या पर अजमाल जी को दर्शन दिये यह देख अजमल जी प्रस्सन हुए, परन्तु विष्णु जी के सिर पर बंधी पट्टी को देखकर चिन्तित होते हुए बोले, "हे प्रभु! ये आपके सिर पर पट्टी कैसी?" तभी भगवान विष्णु जी बोले "ये तो मेरे भक्त का प्रसाद है।" इतना सुन कर अजमाल जी प्रभु के सामने भावुक हो गए और अपनी अश्रुधारा के साथ अपनी पीड़ा का प्रभु के सामने वर्णन करने लगे।

अजमाल जी की पीड़ा सुनकर भगवान विष्णु ने उन्हें यह वचन दिया कि आप निश्चिंत होकर अपने गृहनगर की और प्रस्थान करे मैं स्वयं भादवा सुदी बीज को आपके घर अवतार लूँगा। यह सुनकर अजमाल जी आश्वासित तो हो गए परन्तु उन्होंने पूछा कि "हे प्रभु! मुझ

अज्ञानी को यह कैसे पता चलेगा कि आप पधारे हो?"
         तब प्रभु बोले-


भादुड़ा री बीज रो जद चंदो करे प्रकाश।
रामदेव बण आवसुं राखीजे विश्वास ।।


अर्थात जब भादवा सुदी बीज (दूज) को चन्द्र दर्शन होगा तब आपके राजमहल में कुमकुम के पगलियों से मेरा आगमन होगा।


यह आश्वासन पाकर अजमाल जी ने प्रभु विष्णु से विदा ली और वापिस अपने राज्य की ओर प्रस्थान किया। एक महीने बाद भादवे की दूज का वह दिन भी आ गया जिसका कि अजमाल जी बड़ी उत्सुकता से इन्तजार कर रहे थे।


 द्वारिकाधीश  ने अपने वचनानुसार चन्द्र दर्शन होते ही राजमहल में कुमकुम के पगलियों के साथ अवतार लिया। कुमकुम के पगलियों और पालने में नन्हे रामदेव को देख अजमाल जी अत्यंत ही प्रसन्न हुए ओर यह शुभ समाचार रानी मैणावती को सुनाने के लिए गए। रानी मैणावती हर्ष से भागती हुई पालने की तरफ आई तभी बालक रामदेव ने उफनते हुए दूध को शांत करवा कर माता मैणादे को प्रथम परचा (चमत्कार) दिया, यह देखकर माता मन ही मन प्रभु की लीला को समझ गयी ओर बालक रामदेव को गोद में ले लिया।