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दुज व्रत


बीज का व्रत : 


व्रत धार्मिक आस्था में तो वृद्धी करते ही हैं, स्वास्थ्य में भी लाभकारी सिद्ध होते हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए बाबा रामदेवजी ने अपने अनुयायियों को दो व्रत रखने का उपदेश दिया. प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष की दूज व एकादशी बाबा की द्रष्टि में उपवास के लिए

अति उत्तम थी ओर बाबा के अनुयायी आज भी इन दो तिथियों को बड़ी श्रद्धा से उपवास रखते हैं |

दूज (बीज) के दिन चन्द्रमा में बढ़ोतरी होने लगती हैं यही कारण हैं कि दूज को बीज की संज्ञा दी गयी हैं. बीज यानि विकास की अपार संभावनाएं. वट वृक्ष के छोटे बीज में उसकी विशाल शाखाएं, जटायें, पत्ते व फल समाये रहते हैं इसी कारण बीज भी आशावादी प्रवृति का धोतक हैं ओर दूज को बीज का रूप देते हुए बाबा ने बीज के व्रत का विधान रचा ताकि उतरोत्तर बढ़ते चन्द्रमा कि तरह व्रत करने वाले के जीवन में आशावादी प्रवृति का संचार हो सके |

प्रातः काल नित्य कर्म से निवृत होकर शुद्ध वस्त्र धारण करें (इससे पूर्व व दूज कि रात्रि को ब्रह्मचर्य का पालन करे) फिर घर में बाबा के पूजा स्थल पर पगलिये या प्रतिमा जो भी आपने प्रतिष्ठीत कर रखी हो उसका कच्चे दूध व जल से अभिषेक करे व गुग्गल धूप खेवें तत्पश्चात पूरे दिन अपने नित्यकर्म बाबा को हरपल याद करते हुए करे. पूरे दिन अन्न ग्रहण नहीं करे. चाय, दूध व फलाहार लिया जा सकता है. वैसे तो बीज व्रत में व अन्य व्रतों में कोई फर्क नहीं हैं मगर बीज का व्रत सूर्यास्त के बाद चन्द्रदर्शन के बाद छोड़ा जाता हैं. यदि बादलो के कारण चन्द्र दर्शन नहीं हो सके तो बाबा की ज्योति का दर्शन करके भी छोड़ा जा सकता है. व्रत छोड़ने से पहले साफ़ लोटे में शुद्ध जल भर लेवे ओर देशी घी की बाबा कि ज्योति उपलों ( कंडा, थेपड़ी ) के अंगारों पर करें. इस ज्योति में चूरमे का बाबा को भोग लगावें. जल वाले लोटे में ज्योति की थोड़ी भभूती मिलाकर पूरे घर में छिड़क देवें. तत्पश्चात भोग चरणामृत का स्वयं भी आचमन करें व वहां उपस्थित अन्य लोगों को भी चरणामृत दें. चूरमे का प्रसाद भी लोगों को बांटे. इसके बाद पांच बार बाबा के बीज मंत्र का मन में उच्चारण करके व्रत छोड़ें. इस तरह पूरे मनोयोग से किये गये व्रत से घर-परिवार में सुख-समर्धि आती हैं. किसी भी विपत्ति से रक्षा होती हैं व रोग-शोक से भी बचाव होता हैं |

बीज मंत्र -


ॐ नमो भगवते नेतल नाथाय,

सकल रोग हराय सर्व सम्पति कराय l

मम मनाभिलाशितं देहि देहि कार्यम साधय

ॐ नमो रामदेवाय स्वाहा ||

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